स्कूल चला घर की ओर - मुनि स्कूल की सार्थक पहल
अब बस्ते का बोझ नहीं, न फीस का डर
ड्रैस का झंझट नहीं, न परीक्षा की चिंता
क्योंकि अज्ञानता का अंधियारा मिटाने,
मुनि स्कूल चला घर की ओर
क्या आपने कभी सुना है, कि कभी कोई स्कूल बच्चों को पढ़ाने उनकी चौखट तक पहुंचा हो, शायद नही, लेकिन इसको हकीकत में बदलने का प्रयास कर रहा है दिल्ली का मुनि इंटरनेशनल स्कूल।
जी हां, मुनि इंटरनेशनल स्कूल और एकल्वय सोसायटी ने 1 से 15 जनवरी के बीच एक खास कार्यक्रम स्कूल ऑन व्हील “ स्कूल चला घर की ओर “ की शुरूआत की गई। दिल्ली देहात के दर्जनों गंवों में शिक्षण शिविर लगा कर सैंकङों बच्चों व अभिभावकों को इस मुहिम से जोङा गया।
यह मुहिम उन बच्चों के लिए है जो किसी कारण से अब तक स्कूल नहीं पहुंच सके हैं। ऐसे ही बच्चों को शिक्षित करने के लिए मुनि स्कूल का कारवां बच्चों के द्वार पहुंचा।
इस कार्यक्रम को मूर्त रूप देने वाले डॉ. अशोक कुमार ठाकुर काफी उत्साहित हैं, अपने शिक्षा अनुभवों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने खुले वातावरण और बिना किसी बंदिश के बच्चों को शिक्षा देने के लिए शिक्षकों की टीम गठित की है, जो बच्चों के द्वार पर जा कर उन्हें पढा रहे हैं।
डॉ. अशोक कुमार ठाकुर का मानना है कि प्राचीन समय में भारत में गुरू-शिष्य की परंपरा थी जहां गुरूकुलों में आने वाले शिष्यों को केवल किताबी ज्ञान से ही शिक्षित नहीं किया जाता था, बल्कि उनके सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें नैतिक, आध्यात्मिक, रचनात्मक, तकनीकि ज्ञान, कौशल विकास से परिपूर्ण शिक्षा देकर स्वावलंबी व मानवतावादी इंसान बनाया जाता था। शिष्यों को वर्ष में एक बार होने वाली परीक्षा का डर नहीं सताता था,बल्कि गुरू हर समय विभिन्न माध्यमों से उनकी जांच परख करते रहते थे।
लेकिन समय बदला शिक्षण-प्रशिक्षण का तरीका बदला - गुरूकुल पद्ति धीरे-धीरे कम होती गई और सैंकङों वर्ष पूर्व आधुनिक शिक्षा का पदार्पण हुआ। शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले गुरूकुलों का स्थान आधुनिक स्कूलों ने ले लिया, जहां एक गुरू की बजाय विभिन्न विषयों के अलग-अलग शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों को शिक्षित करने का दौर शुरू हुआ।
परिणाम स्वरूप शिक्षा में व्यवसायीकरण आरंभ हुआ और साधारण स्कूल आलिशान भवनों में बदलने लगे, तो शिक्षा का मूल स्वरूप विकृत होकर सामने आया। आज शिक्षा से जिस प्रकार नैतिक मूल्यों, समाजिक सद्भाव व मानवता जैसे विषयों का लोप हुआ है, जो गंभीर चिंता विषय है। लेकिन मुनि स्कूल आज विकृत होती शिक्षण व्यवस्था से डट कर मुकाबला करने में लगा है, हमें भी समाज को श्रेष्ठ मानव देने के लिए ऐसे ही स्कूलों का बीजारोपण करना होगा। जहां के बच्चे किसी भी प्रकार की दीवारों में न बाधें, केवल शिक्षकों पर आश्रित न हों, प्रकृति की हर सजीव-निर्जीव वस्तुएं, हवाएं तथा मौसम भी उन्हें शिक्षित करें और छात्र में अपने ज्ञान व विवेक से किसी भी चीज को प्रमणिक करने की क्षमता हों, पूरी दुनिया ही एक विद्यालय बने।
”स्कूल ऑन व्हील“ मुहिम ते तहत यह स्कूल खुद छात्रों के बीच उनके गली-मौहल्ले में जा कर उन्हें केवल शिक्षित ही नहीं करेगा बल्कि उसे जीवन में सफल होने के लिए भी विभिन्न माध्यमों से प्रशिक्षित भी करेगा। ताकि 21वीं शदी के इस दौर में कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रह सके।
इस अनूठे स्कूल से जुङने वाले छात्रों को सुबह स्वेरे उठ कर किसी चार दिवारी में बंधने, ड्रैस पहनने, फीस देने तथा परीक्षा से डरने की जरूरत नहीं है। जब बच्चों का शिक्षा के प्रति लगाव बन जाएगा तब आगे की शिक्षा के लिए अभिभावकों का सहयोग करते हुए उनके बच्चों को नजदीक के स्कूल में दखिला दिलवा दिया जाएगा।
मुनि स्कूल ने सभी मिथकों को तोङते हुए साबित कर दिखाया है कि शिक्षा किसी शिक्षक, फैकल्टी या अलिशान भवन की मोहताज नहीं, बल्कि शिक्षा कहीं भी दी जा सकती है।, जिससे कि समाज शिक्षित हो सके। शिक्षा और शिक्षार्थी तो एक श्रद्धालु की भांति होते हैं जो न रूप-रंग देखते हैं और ना ही समय और स्थान, बल्कि सीखने वालों की प्रबल इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है।